एक गीत, जिसे मैंने तो केवल उभार दिया है -जगदीश पंकज
कोरे कागज पर पहले ही,
जाने क्या-क्या लिखा हुआ था
मैंने तो अपनी स्याही से
केवल उसे उभार दिया है
यह मेरा सौभाग्य, मुझे
अवसर देकर
अनुग्रहित किया है
मैंने वही लिखे हैं अक्षर
जिनको अनगिन बार जिया है
जिसने देखा बहुत सराहा
मेरी आँखें झुकी जा रहीं
मैंने भी अपना कह देने का
कुछ तो अपराध किया है
तथाकथित मेरे अपने ही
अग्रज-अनुज
सभी दोषी हैं
जिनके स्नेह और आदर ने
मेरी अभिलाषा पोषी हैं
मौलिकता का दम्भ जी रहे
केवल अनुकृतियां करने में
जो कुछ हम अपना कहते हैं
पुरखों से सायास लिया है
-जगदीश पंकज
कोरे कागज पर पहले ही,
जाने क्या-क्या लिखा हुआ था
मैंने तो अपनी स्याही से
केवल उसे उभार दिया है
यह मेरा सौभाग्य, मुझे
अवसर देकर
अनुग्रहित किया है
मैंने वही लिखे हैं अक्षर
जिनको अनगिन बार जिया है
जिसने देखा बहुत सराहा
मेरी आँखें झुकी जा रहीं
मैंने भी अपना कह देने का
कुछ तो अपराध किया है
तथाकथित मेरे अपने ही
अग्रज-अनुज
सभी दोषी हैं
जिनके स्नेह और आदर ने
मेरी अभिलाषा पोषी हैं
मौलिकता का दम्भ जी रहे
केवल अनुकृतियां करने में
जो कुछ हम अपना कहते हैं
पुरखों से सायास लिया है
-जगदीश पंकज